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परमात्मा

उसे पाने की शर्त एक ही है कि मैं खो जाए।

जिसने स्वयं को नही जाना
वह कभी परमात्मा को 
नही जान पाएगा,
क्योंकि परमात्मा स्वयं का 
ही विराट रूप है।

परमात्मा ने मनुष्य रूप रूप में पैदा कर 
तुमको इतना बड़ा सम्मान दे दिया…
तो फिर तुम क्यों बेवजह का सम्मान पाने के चक्करो में 
अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हो…

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जिंदगी की भूल नही है। जीने के ढंग में भूल है। जीने का ढंग न आया। गलत ढंग से जीए। तो जहां स्वर्ण बरस सकता था, वहां हाथ में केवल राख लगी। जहां फूल खिल सकते थे, वहां केवल कांटे मिले। और जहां परमात्मा के मंदिर के द्वार खुल जाते, वहां केवल नर्क निर्मित हुआ। तुम्हारी जिंदगी तुम्हारे हाथ में है। जिंदगी कोई निर्मित घटना नही है, अर्जित करनी होती है। जिंदगी मिलती नही, बनानी होती है। मिलती तो है कोरी स्लेट, कोरा कागज। क्या तुम उस पर लिखते हो, वह तुम्हारे हाथ में है। तुम दुख की गाथा लिख सकते हो। तुम आनंद का गीत लिख सकते हो।